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घर और बाहर की अपेक्षाएं पूरी करते कई बार महिलाएं इतनी व्यस्त और लापरवाह हो जाती हैं कि उन्हें अपने बारे में पता ही नहीं रहता। जबकि दुनिया भर के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की शारीरिक और मानसिक सेहत प्रभावित हो रही है। इसके सामाजिक ढांचा, आर्थिक आजादी, जानकारी का अभाव और कई बार खुद पूरे समाज की लापरवाही भी जिम्मेदार है।
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पीरियड्स से जुड़ी परेशानियां
मासिक धर्म या पीरियड्स लड़कियों में होने वाली एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। इसकी शुरुआत किशोरावस्था में होती है लेकिन जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष इसी के साथ बीतते हैं। इस दौरान पीरियड्स शुरू होने के पहले और उसके बाद भी महिलाओं को तमाम शारीरिक, मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रूढ़िवाद और सामाजिक अज्ञानता इस दर्द को और बढ़ा देते हैं। शारीरिक पीड़ा के लिए दवाएं हैं जो दर्द को कुछ हद तक दबा देती हैं। लेकिन जानकारी का अभाव और साफ-सफाई की कमी कई घातक बीमारियों और इन्फेक्शन को जन्म दे सकती है।
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पोस्ट नेटल डिप्रेशन
इस सृष्टि को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी स्त्री की है इसलिए मां बनने की तकलीफ से भी उसे ही गुजरना होता है। प्रेग्नेंसी और डिलिवरी की परेशानियां शायद उतनी ज्यादा महसूस नहीं होतीं जितनी डिलिवरी के बाद होने वाला डिप्रेशन। अगर परिवार का सहयोग और सही समय पर इलाज न मिले तो यह काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
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सर्वाइकल कैंसर
सर्वाइकल कैंसर दुनिया भर में महिलाओं में कैंसर के कारण होने वाली मौतों का चौथा सबसे बड़ा कारण है। एक स्टडी के मुताबिक, पूरी दुनिया में हर साल 5 लाख सर्वाइकल कैंसर के मामले सामने आते हैं, इनमें 27 पर्सेंट अकेले भारत की महिलाएं शामिल होती हैं। जानकारी का अभाव और सही इलाज तक पहुंच न हो पाना इसके निवारण में सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
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ब्रेस्ट कैंसर
एक सर्वे के मुताबिक, भारत में हर आठ में से एक महिला स्तन कैंसर की चपेट में है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। उम्र बढ़ने के साथ इसका जोखिम भी बढ़ता जाता है। इसके लिए आनुवांशिक कारण भी जिम्मेदार बताए जाते हैं। सही समय पर पता चल जाए तो सर्जरी और कीमोथेरपी से इलाज मुमकिन है। लेकिन जारुकता की कमी और झिझक के कारण अधिकतर महिलाओं के लिए यह सबसे जानलेवा कैंसर है।