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पसंदीदा खाना देखते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है। कई बार लोग अपने फेवरेट फूड को इतना ज्यादा पेट भरकर खा लेते हैं कि ऐसा लगता है खाना गले तक पहुंच गया है। जो लोग बार-बार ऐसा करते हैं, उनमें यह स्थिति ''ईटिंग डिसऑर्डर'' जैसी बीमारी का रूप ले लेता है। ईटिंग डिसऑर्डर (Eating Disorder) में एक व्यक्ति अपनी नॉर्मल डाइट से बहुत ज्यादा या बहुत कम खाता है। यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि पुरुष इससे अछूते हैं। ईटिंग डिसऑर्डर (Eating Disorder) तीन तरह का होता है- एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलीमिया नर्वोसा और बिन्ज ईटिंग डिसऑर्डर।
एनोरेक्सिया नर्वोसा (what is anorexia nervosa) से पीड़ित लोग अपने वजन को लेकर इतने ज्यादा चिंतित रहते हैं कि उनके दिमाग में वजन घटाने का फितूर सवार रहता है जिसके चलते वह अपने खाने की मात्रा कम-से-कम करते जाते हैं। ऐसे लोग अपने शारीरिक बनावट को लेकर इतने चिंतित रहते हैं कि खुद को भूखा रखने के साथ ही वजन घटाने की गोलियां भी खाने लगते हैं।
[caption id="attachment_683205" align="alignnone" width="655"] एनोरेक्सिया से ग्रसित लोग अपने वजन को लेकर अत्यधिक चिंतित रहते हैं। © Shutterstock[/caption]
इसमें व्यक्ति का वजन अचानक कम होने लगेगा (symptoms of anorexia nervosa), त्वचा का पीला और ड्राई रहना, महिलाओं में पीरियड्स इर्रेगुलर होना, शरीर पर हल्के बालों का होना, सिरदर्द, नींद कम आना, अवसाद और तनाव ग्रस्त रहना, कब्ज आदि की समस्या नजर आ सकती है।
इसमें व्यक्ति शुरुआत में अधिक खाता है, लेकिन बाद में उसे जबरदस्ती उल्टी कर निकालने लगता है। धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है। खुद पर काबू न रखते हुए अपनी डायट से बहुत ज्यादा खाना और बाद में ओवर ईटिंग का एहसास होने पर उल्टी करने की कोशिश करना ही बुलीमिया के लक्षण हैं। एनोरेक्सिया नर्वोसा के मरीज की ही तरह बुलीमिया नर्वोसा के मरीज भी वजन बढ़ने और अपने शारीरिक ढांचे को लेकर परेशान रहते हैं।
गले का अक्सर खराब रहना, पानी की कमी, थकान महसूस करना, मसूड़ों के नीचे व गले में सूजन, सोडियम, कैल्शियम, पोटैशियम और अन्य खनिज पदार्थों का लेवल बहुत ज्यादा या कम होना आदि।
इससे ग्रस्त (what is binge eating) लोग अक्सर हद से ज्यादा खाते हैं, ऐसे में उनमें मोटे होने की संभावना अधिक रहती है, क्योंकि इन मरीजों का व्यवहार एनोरेक्सिया, बुलीमिया के मरीजों से विपरीत होता है। यह अपने वजन बढ़ने को लेकर चिंतत नहीं होते, जिसका परिणाम यह होता है कि पूरा दिन कुछ न कुछ खाते रहने से इनका वजन बढ़ता जाता है।
[caption id="attachment_683206" align="alignnone" width="655"] बिंज ईटिंग के मरीजों में मोटापा होने की संभावना ज्यादा रहती है। © Shutterstock[/caption]
हाई ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रोल बढ़ना, पैरों व जोड़ों में दर्द, कुछ-कुछ देर में अकेले ही खाते रहना, जल्दी-जल्दी खाना आदि।
ईटिंग डिसऑर्डर (causes of eating disorder) होने की सबसे बड़ी वजह मानसिक और सामाजिक होती है। तनाव, डिप्रेशन, अकेलापन, इमोशनल घटना कुछ ऐसी ही वजहें होती हैं जो ईटिंग डिसऑर्डर का कारण बनती हैं। कई बार लोग अपने मोटापे से इतने परेशान रहते हैं कि वो इसे कम करने के लिए बिल्कुल ही खाना छोड़े देते हैं। इसी कारण लोग ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके अलावा कई बार यह बीमारी बायोलॉजिकल भी होती है।
शरीर में कुछ एंजाइम होते हैं, जिनमें असंतुलन पैदा होने से मन में डिप्रेशन आ जाता है। या फिर बहुत ज्यादा व्यायाम करने या ज्यादा डाइटिंग के कारण भी एनोरेक्सिया के शिकार हो जाते हैं। कई बार ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या अनुवांशिक कारणों से भी होती है।
ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज (treatment of eating disorder) मनोविज्ञानिक व काउंसलिंग की मदद से किया जाता है। एनोरेक्सिया के मरीजों को विभिन्न प्रकार की साइकोथेरेपी दी जाती है, जिसमें मरीज के दीमाग से ज्यादा वजन होने का वहम निकाला जाता है। ईटिंग डिसऑर्डर के सायकोलॉजिकल कारणों का पता लगाया जाता है। अच्छे परिणामों के लिए साइकोथेरेपी के साथ-साथ मेडिकेशन के जरिए भी ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज किया जाता है।
बुलीमिया डिसऑर्डर में भी थेरेपी और दवाओं का सहारा लिया जाता है। सबसे पहले, उन कारणों का पता लगाया जाता है, जिसके कारण लोग अधिक खाने लगते हैं। उसके बाद काउंसलिंग की जाती है। इसमें एक डायट चार्ट फॉलो करने की सलाह दी जाती है। हालांकि, एनोरेक्सिया के मुकाबले बुलीमिया के मरीजों में सुधार की उम्मीद ज्यादा होती है।
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