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एम्स: क्यों हो रही है 13 फीसदी स्कूली बच्चों की नजर कमजोर?

एम्स: क्यों हो रही है 13 फीसदी स्कूली बच्चों की नजर कमजोर?
एक किंवा बहूभाषिक मुलांच्या बौद्धिक विकास समान होत असला तरीही मातृभाषा आधी शिकून नंतर मुलं दुसरी भाषा शिकताना मेंदूच्या रचनेत आणि कार्यात सकारात्मक बदल आढळून आले आहेत. ज्यामुळे विवेकबुद्धी, विचार करण्याची क्षमता सुधारते.

बच्चों में नजर कमजोर होने की समस्या क्यों बढ़ रही है?

Written by Agencies |Updated : January 5, 2017 8:36 AM IST

मूल स्रोत: IANS Hindi

आजकल शिशु तक भी मोबाइल हो या तरह-तरह के इलेक्टॉनिक गैजेट के आदि हो गए हैं। क्योंकि होश संभालते ही वे अपने चारो अोर इन चीजों को ही ज्यादा पा रहे हैं। इसलिए वे इन सब चीजों से ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। माता-पिता अपने परेशानी को कम करने के लिए उन्हें इन चीजों के साथ व्यस्त रहने के लिए छुट दे देते हैं। फल ये होता है कि वे इन चीजों को बगैर जीने की कल्पना ही नहीं कर पाते हैं। उनके इस आदत का मोल उनको अपने आंखों से देना पड़ता है।  इसलिए भारत के लगभग 13 फीसदी स्कूली बच्चों की दूर की नजर कमजोर होती है। एम्स (अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान) के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। अध्ययन में कहा गया है कि पिछले एक दशक में यह संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है।

एम्स के राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथालमिक साइंसेज के मुताबिक एक दशक पहले यह आंकड़ा महज 7 फीसदी था। जिन दूसरे देशों में यह समस्या बढ़ी है उसमें चीन, सिंगापुर और थाईलैंड के बच्चे भी शामिल हैं।

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आरपी सेंटर के प्रमुख अतुल कुमार ने बताया, 'भारत में आंखों संबंधी रोगों के बारे में काफी कम अध्ययन किया गया है और मायोपिया भी उनमें से एक है। हम इसके अलावा अन्य अध्ययन भी कर रहे हैं।' एम्स के ऑपथालमिक विभाग के प्रोफेसर जीवन सिंह तितियाल ने बताया, 'अभी तक मैं स्वैच्छिक दान के तहत 400 कोरोना प्राप्त किया है। इस केंद्र में स्थापना से लेकर अब तक कोर्निया की 950 सर्जरी की गई है।'

चित्र स्रोत: Shutterstock