World Asthma Day 2022:अस्थमा श्वसन प्रक्रिया से जुड़ी एक बीमारी है आयुर्वेद में अस्थमा की बीमारी को तमक श्वास के तौर पर जाना जाता है। यह बीमारी वात और कफ दोष के गम्भीर होने से जुड़ी हुई है। दमा या अस्थमा के मरीजों में श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है जिससे छाती में भारीपन महसूस होता है। अस्थमा के मरीज जब सांस लेते हैं तो उस समय सीटी बजने जैसी आवाज आती है। अस्थमा के कई कारण हैं, इसके लिए चाहे लगातार विकसित हो रहे औद्योगिकरण को दोषी माना जाए, प्रदूषण को या फिर तेजी से बढ़ रही जनसंख्या को लेकिन अस्थमा के मरीज़ों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी गयी है। अस्थमा की बीमारी (Asthma) से पीड़ित लोगों को अपना बहुत अधिक ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि, आसपास के वातावरण और विभिन्न स्थितियों के कारण अस्थमा अटैक का रिस्क बढ़ सकता है। (Asthma Risk Factors in Hindi.)
अस्थमा के उपचार विकल्प के तौर पर आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति एक लोकप्रिय तरीका है। यह पद्धति इस बात पर आधारित है कि अस्थमा पाचनतंत्र में गड़बड़ियों की वजह से होता है न कि फेफड़ों में और इसी सिद्धांत पर आयुर्वेद में अस्थमा के इलाज के प्रयास किए जाते हैं। आयुर्वेद फ़िज़िशियन (सौमैय्या आयुर्वेद सेंटर) डॉ. अदिती गाडगिल (Dr. Aditi Gadgil), बता रही हैं कि अस्थमा के लक्षण और रिस्क फैक्टर्स के बारे में। इसके साथ-साथ उन्होंने यह भी बताया कि आयुर्वेद में अस्थमा के इलाज के लिए इस तरह के उपाय सुझाए गए हैं। साथ ही, खान-पान से जुड़े बदलाव और आयुर्वेदिक नुस्खों की मदद से अस्थमा के मरीजों के लिए राहत पाने के उपायों के बारे में भी जानकारी दी।
आयुर्वेद में अस्थमा(तमक श्वास) होने के विभिन्न कारणों (Asthma Causes) के बारे में बताया गया है जो इस प्रकार हैं-
1. बार-बार सूखा, ठंडा, पचने में भारी या गरिष्ठ भोजन करना। इसी तरह गलत फूड कॉम्बिनेशन्सके सेवन से भी अस्थमा का रिस्क बढ़ता है।
2. ग़लत तरीके से और ग़लत समय पर खाना खाने की आदत।
3. कच्चा और ठंडा दूध (मिल्कशेक, आइसक्रीम आदि के रुप में) पीना।
4. ठंडा पानी और कोल्ड्रिंक्स पीना।
5. नियमित रुप से काला चना, अधिक तेल और मसाले वाले फूड्स का सेवन करना।
6. बहुत ठंडा तापमान (एसी), ठंडे मौसम में घूमना-फिरना।
7. प्रदूषण, धुएं और पराग के सम्पर्क में आना ।
8. प्राकृतिक वेग (शौच, पेशाब, खांसी, छींक आदि) को रोकना।
इनमें से कुछ कारण वात और कफदोष की ख़राबी पैदा करते हैं। जो पित्त स्थान तक पहुंच जाते हैं और श्वास से जुड़ी समस्याएं पैदा होती है।
15मिली दोपहर और रात के भोजन के बाद पानी के साथ बराबर मात्रा में लें।
2 ग्राम दोपहर और रात के भोजन के बाद शहद के साथ लें।
5 ग्राम सुबह खाएं।
5 ग्राम से 10 ग्राम दोपहर और रात के भोजन के बाद लें।
125 से 250 मिग्रा दोपहर और रात के भोजन के बाद शहद या गर्म पानी के साथ लें।
125 से 250 मिग्रा दोपहर और रात के भोजन के बाद शहद या गर्म पानी के साथ लें।
1 से 2 ग्राम दोपहर और रात के भोजन के बाद शहद के साथ लें।
ये दवाइयां अलग से और अन्य दवाइयों के साथ इस्तेमाल की जा सकती हैं। लेकिन इनका सेवन केवल आयुर्वेदिक डॉक्टर के परामर्श अनुसार ही करना चाहिए, जो मरीज़ की प्रकृति, बीमारी की गंभीरता आदि पर आधारित होती है।
अस्थमा के रोगियों के लिए आयुर्वेदिक आहार से जुड़े सुझाव
अस्थमा के कारक और रिस्क फैक्टर्स -
ये ऐसी स्थितियां हैं जो अस्थमा की सम्भावना बढ़ा सकती हैं। अनुवांशिक कारणों के अलावा एनिमिया( anaemia), राइनाइटिस (rhinitis) आदि से आयुर्वेद की मदद से राहत पायी जा सकती है। रसायन थेरेपी आयुर्वेद की एक अनोखी शाखा है, जिसमें आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर प्रयास किए जाते हैं। आगे चलकर यह मरीज़ को अस्थमा के खतरों और बार-बार होनेवाले इंफेक्शन्स से बचाता है। श्वास की समस्याओं से पीड़ित लोगों को रसायन थेरेपी में पिप्पली (Piper longum) से बनायी गयी दवाओं की सलाह मुख्य रुप से दी जाती है।
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