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यादें सुहानी होती हैं। आपकी दादी जो गाना अक्सर गुनगुनाती थी उसे रेडियो पर सुनना आपके लिए दुनिया की सबसे प्यारी याद है। तो कभी किसी फल का स्वाद याद दिलाता है उन दिनों की जब आप अपने दोस्तों के साथ छुट्टियों में मज़े से खाते थे। ये यादों का ही जादू है कि हम यकायक ढेर सारी बातें कल हुआ घटनाओं जैसी लगने लगती हैं।
जहां इन यादों का अपना ही एक अलग अहसास है वहीं कई बार यादें तकलीफ का भी कारण बन जाती हैं। इसी तरह बहुत से लोग अपने बीते हुए बुरे समय से इतना ज़्यादा जुड़े हुए होते हैं, कि वे मौजूद वक़्त की खुशियों में भी शामिल नहीं हो पाते। यादें तो याद आती ही हैं, लेकिन हद से ज़्यादा अतीत को याद करना तकलीफ का कारण बनता है, जिसके बारे में बता रहे हैं डॉ.अमिताभ घोष।
“यादें बीते हुए समय का एक सबूत-सा हैं, जो गुज़रे हुए समय, विशेषकर अच्छे समय से जुड़ी बातों को आपके दिमाग और मन में बार-बार दोहराती रहती हैं। लेकिन यादों की परिभाषा बस इतनी नहीं। कई बार आप अपनी यादों से बाहर नहीं निकल पाते, उसका क्या? क्या आपकी यादें आपको वर्तमान की स्थितियों और चीज़ों को बिगाड़ने पर मज़बूर कर रही हैं, वो भी केवल इसीलिए क्योंकि आप उन यादों को दोबारा जी सकें? आप तनाव में हैं, आपकी शक्ति कम हो रही है और आप अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। यह आपके प्रॉडक्टिव और मूल्यवान जीवन के लिए एक ख़तरा है,” ये कहना है डॉ. घोष का। इस आर्टिकल में, डॉ. घोष बता रहे हैं आपको उन कारणों के बारे में जो हमें वर्तमान को नियंत्रित न कर पाने और पिछली बातों में धंसे रहने के की वजह बनती हैं।
यह सब दिमाग की उपज है?
डॉ.घोष कहते हैं कि हमारे दिमाग में 3 प्रकार के नेटवर्क होते हैं।
• अटेंशन नेटवर्क– यह तब सक्रिय होता है जब आप किसी काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
• डिफॉल्ट नेटवर्क– जब आप मानसिक रुप से काम न ले रहे हों (जैसे दिन में सपने देखना या कल्पनाएं करते हुए) यह सक्रिय होता है। यह अचानक से हमारे मुंह से निकली उन बातों के लिए भी ज़िम्मेदार है जो हम खुद से कहते हैं।
• सलिएन्स (Salience) नेटवर्क– यह प्राप्त की जाने वाली सभी सूचनाओं को स्कैन करता है और इसके अनुसार अटेंशन नेटवर्क या डिफॉल्ट नेटवर्क को रोकता है। यह इस पर भी निर्भर करता है कि ज़रूरी क्या है।
क्या होता है जब डिफ़ॉल्ट नेटवर्क अधिक सक्रिय हो जाता है और बाकी दोनों नेटवर्क्स पर हावी हो जाता है? आपका मन भटक जाएगा, और आप हाथ में लिए काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे, जिस पर फ़ोकस करना चाहिए। आमतौर पर डिफ़ॉल्ट नेटवर्क की गतिविधियां इन स्थितियों में बढ़ जाती हैं।
• डिप्रेशन
• बेचैनी
• गांजा या मरीजुआना (Marijuana) का सेवन
ऐसा क्यों होता है?
“डिप्रेशन और बेचैनी विभिन्न कारण हो सकते हैं। जिनमें अतीत में मानसिक तकलीफें या पीड़ादायक स्थितियों से गुज़रना भी हो सकता है,” डॉक्टर घोष ने बताया जिनका कहना है कि “यह पीड़ा गम्भीर भी हो सकती है या फिर हल्की, जो कुछ दिनों तक बार-बार महसूस होती है। बलात्कार और एक्सीडेंट जैसी घटनाएं गंभीर पीड़ा के तौर ओर देखी जा सकती हैं। तो वहीं छोटी-छोटी बातों पर पिटाई, अपमान, स्कूल में दूसरों द्वारा परेशान करना या अपने अभिभावकों द्वारा मारने-पीटने जैसी चीजें हल्की पीड़ा के तौर पर देखी जा सकती हैं।”
इस तरह के पीड़ादायक अनुभवों की वजह से बच्चे के मन में खुद के लिए नकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं। वो अपने आप को हमेशा कोसता है, ‘मैं बुदधू हूं’, ‘मैं कोई काम नहीं कर सकता’, ‘मैं पागल हूं’- जैसे कई शब्द वह अपने लिए इस्तेमाल करता है। इस तरह के विचारों के चलते बच्चे के मानसिक और व्यवहारिक गतिविधियों पर असर पड़ता है।
अतीत में बहुत अधिक जीने पर क्या होता है?
डॉ. घोष कहते हैं, “ऐसे लोग नकारात्मक सोच के साथ बड़े हो जाते हैं और उन्हें करियर और आगे चलकर अच्छे रिश्ते बनाने में दिक्कत आती है।” ऐसे लोग विभिन्न प्रकार की भावनाएं महसूस कर सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
• वे अवसाद या डिप्रेशन और बहुत अधिक चिंता महसूस करने लगते हैं
• वे अपने अतीत में पूरी तरह फंस जाते हैं और उनके साथ होनेवाले ताज़ा अनुभवों के आधार पर अपनी ज़िंदगी जीने लगते हैं।
• वे उचित मूल्यों या उसूल नहीं बना पाते, ना ही किया गया वादा निभा पाते हैं। ये समझदारी भरे लक्ष्य भी नहीं तय कर पाते।
• अधिक खुश या संतुष्ट रहने के लिए वे उचित मूल्यों पर आधारित नियमों पर नहीं चल पाते।
• वे अतीत से प्रभावित होकर खुद के लिए एक कठोर भावना विकसित कर लेते हैं। वे अतीत में हुई घटनाओं को गुज़रा हुआ समय नहीं मान पाते और उसे वर्तमान मानकर उसी हिसाब से व्यवहार करते हैं।
इसका इलाज क्या है?
इन रोगियों की पीड़ा तीव्र होती है, लेकिन इससे राहत के लिए दवाइयों की मदद ली जा सकती है। लेकिन उन्हें लम्बे समय तक फायदे के लिए, आई मूवमेंट डिसेंसिटाइजेशन एंड रीप्रोसेसिंग (Eye Movement Desensitization and Reprocessing- EMDR) दिमाग केंद्रित करने, अटेंशन एंड कमिटमेंट थेरेपी (attention and commitment therapy) और सीबीटी (CBT) जैसी चिकित्सा पद्धतियों की मदद लेनी पड़ सकती है। ईएमडीआर ऐसे लोगों के लिए मददगार साबित हो सकती है जो अतीत में किसी पीड़ादायक परिस्थिती को भुगत चुके हैं और उसकी यादों से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं।
डॉ. घोष ऐसे लोगों को एक सलाह भी देते हैं। वे कहते हैं कि, “ अपने अतीत में बुरी तरह फंसे लोगों को समझाना होगा कि अतीत में बीती चीजें नियति नहीं हैं। उसे बार-बार याद करना नहीं चाहिए।” वे कहते हैं कि यह पीड़ित व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि वह खुद की तकलीफ या संताप बढ़ानेवाले विचारों से दूर रहने की कोशिश करे। क्योंकि इस तरह के निराशात्मक विचार उन्हें अतीत की बुरी घटनाओं से उबरने नहीं देगें।
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अनुवादक -Sadhna Tiwari
चित्र स्रोत- Shutterstock.