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आयुर्वेद की मदद से ऐसे रखें अपने दिल का ख्याल

आयुर्वेद की मदद से ऐसे रखें अपने दिल का ख्याल

शरीर की प्रकृति के हिसाब से रखें इन बातों का ख्याल!

Written by Editorial Team |Updated : February 10, 2017 6:55 PM IST

क्या आप जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार हमारा दिल हमारे प्राण का केंद्र हैं यानि हमारी जान हमारे दिल में बसती है? दरअसल हमारा दिल रक्त के माध्यम से ऑक्सिजन और पोषक तत्व शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाता है। इसी तरह बहुत से लोगों को शायद यह नहीं पता कि हर किसी के शरीर की प्रकृति अलग होती है। जिसके आधार पर उन्हें दिल की बीमारियों का ख़तरा या सम्भावना होती है। आयुर्वेद में प्रकृति किस व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक बनावट का वर्णन करती है। डॉ.शिखाज न्यूट्रीहेल्थ में सीनियर आयुर्वेदिक डॉक्टर, डॉ. जयश्री भट्टाचार्जी बता रही हैं विभिन्न प्रकार की शारीरिक प्रकृति के बारे में। साथ ही डॉ.जयश्री दे रही हैं दिल की बीमारियों से बचने के लिए ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

वात प्रकृति

अगर आपकी शरीर वात प्रकृति की है तो आपको दिल की बीमारियों होने की सम्भावना अधिक होती है जिसकी पहचान हार्ट रेट में बदलाव और दिल में दर्द जैसे लक्षणों से की जा सकती है। मरीज़ को हार्ट अटैक, हाइपरटेंशन, असामान्य हार्टबीट या दिल का ज़ोर-ज़ोर से धड़कना या अरिद्मीअ (arrhythmia) और दिल की मांसपेशियों के कमज़ोर होने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके मुख्य कारण हैं अत्यधिक तनाव, चिंता, नींद की कमी और अधिक काम है।

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किन बातों का रखें ध्यान-

1. अत्यधिक मात्रा में जंक फूड, मैदे से बनी चीज़ें और सूखी चीज़ें न खाएं क्योंकि उनसे वात बढ़ता है।

2. खाना न खाने, बहुत अधिक एक्सरसाज़ करने से भी शरीर में वात का संतुलन बिगड़ जाता है।

3. अपने खाने में मेथी, दालचीनी, राई, सौंफ और जीरा शामिल करें क्योंकि यह शरीर में तीनों दोषों को संतुलित करता है।

4. अपने भोजन में लहसुन का भी इस्तेमाल करें। यह वात को बढ़ने से रोकता है।

5. तनाव और चिंता से राहत और दिल की बीमारियों का खतरा कम करने के लिए, आप अश्वगंधा पावडर (3 ग्राम) और दूध का नियमित सेवन करें।

पित्त प्रकृति

पित्त प्रकृति वाले लोगों को हार्ट डिज़िजेस या दिल की बीमारियों का खतरा अधिक होता है। जिसकी पहचान दिल का फूलने (सूजन के साथ या सूजन के बगैर) से की जा सकती है। पित्त दोष वाले ज़्यादातर लोगों में दिल की बीमारियों का मुख्य कारण लीवर से जुड़ी कोई अनजानी गड़बड़ी या शरीर का अत्यधिक तापमान होता है।

किन बातों का रखें ध्यान-

1. मसालेदार और तली हुई चीजें खाने से बचें क्योंकि यह सूजन और जलन बढ़ाकर आपके दिल की मुश्किलें बढ़ा सकती है। इसी तरह, पित्त बढ़ानेवाली चीज़ें जैसे पापड़, अचार और नमक की अधिक मात्रा चीज़ें भी कम मात्रा में खानी चाहिए।

2. चाय, कॉफी और शराब से शरीर की गर्मी बढ़ती है (अत्यधिक गर्मी के उत्पादन को प्रोत्साहित करते हैं), इसलिए इनसे परहेज करना ठीक है। पित्त को नियंत्रित करने के लिए चाय-कॉफी और शराब की जगह नींबू पानी और ग्रीन टी पीएं।

3. अपनी डायट से भरपूर पोषण पाने के लिए, हल्दी, धनिया, जीरा और सौंफ का सेवन करें। यह दोष को संतुलित करने के साथ दिल को भी बीमारियों से बचाते हैं।

4. इसी तरह, अर्जुन के पेड़ की छाल (3 ग्रा) को दूध में उबालकर पीएं या दो चम्मच ऐलो वेरा जूस को सुबह दो चम्मच पानी के साथ रोज़ाना खाली पेट लें।

5. मानसिक विकारों और गुस्से पर काबू रखने के लिए प्राणायाम, अनुलोम-विलोम का अभ्यास करें।

कफ प्रकृति

अगर आपकी प्रकृति कफदोष की है तो आपको दिल की ऐसी बीमारियों का खतरा हो सकता है, जिनकी पहचान आप धमनियों में फैट (लिपिड) और कैल्शियम के इकट्ठा होने से की जा सकती है। जो आगे चलकर, धमनियों के मोटे होने और रक्त वाहिनियों में रुकावट आने के कारण दिल को रक्त की सप्लाई कम होती है। अगर आपकी प्रकृति कफ है, तो आपको इस्कीमिक हृदय रोग (ischemic heart disease) और कोरोनरी धमनी (coronary artery disease) से जुड़ी बीमारियों की काफी सम्भावना होती है।

किन बातों का रखें ध्यान-

1. बेहतर होगा कि आप तली हुई चीज़ें जैसे फ्राइज़, चिप्स, समोसे और कचौड़ी जैसी चीज़ें न खाएं।

2. कफ प्रकृति के लोगों के दिल पर पड़नेवाले असर को बेअसर करने के लिए हल्की एक्सरसाइज़ेस करनी चाहिए। आप सप्ताह में 5 दिन या रोज़ाना 20 – 25 मिनट के लिए ब्रिस्क वॉक कर सकते हैं।

3. कफ प्रकृति के लोगों की ऊर्जा नम, स्थिर और शांत होती है इसलिए आपको ऐसी चीज़ें खानी चाहिए जो गर्म, सूखी और पचने में आसान हों। आप फल, ग्रीन टी, ब्रोकली, पत्तागोभी और गहरे हरे रंग की सब्ज़ियां खा सकते हैं।

4. शरीर में कफ की अत्यधिक मात्रा को संतुलित करने के लिए आप दालचीनी, काली मिर्च, और सूंठ (सूखी अदरक) का पावडर ले सकते हैं।

5. अगर आप प्राकृतिक तरीके से इसका इलाज़ करना चाहते हैं, तो आप दिन में 2 बार 3 ग्राम अर्जुन के पेड़ की छाल को शहद के साथ लें या 3 ग्राम त्रिकटु पावडर गर्म पानी के साथ (भोजन के बाद बेहतर) लें।

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अनुवादक-Sadhna Tiwari

चित्रस्रोत- Getty images, Shutterstock.