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अचानक कार्डियेक अरेस्ट (cardiac arrest) की आशंका वाले रोगियों में किए गए एक अध्ययन से यह पता चला है कि इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर थेरेपी या आईसीडी (Implantable Cardioverter Defibrillator Therapy) के उपयोग से मृत्यु जोखिम में दर में 49 प्रतिशत तक की कमी आई है, उनकी तुलना में जिन्होंने आईसीडी इम्प्लांट नहीं लिया है। भारत में कार्डियेक अरेस्ट के मरीजों में आईसीडी थेरेपी का उपयोग कम हुआ है। आज इस बात की आवश्यकता है कि जीवन बचाने में इस थेरेपी के प्रभाव को लेकर जागरूकता बढ़ाई जाए और इस तथ्य की भी कि वेन्ट्रीक्युलर अराहायथेमिस के उपचार में यह 99 प्रतिशत तक प्रभावशाली रहा है, जो कि अचानक आने वाले कार्डियेक अरेस्ट का प्रमुख जोखिम कारक (causes of cardiac arrest) है।
कार्डियेक अरेस्ट (cardiac arrest) तब होता है, जब अचानक से दिल को किसी तीव्र गतिविधि के कारण नुकसान होता है। इसे वेंट्रीक्युलर टायकार्डिया या वेेंट्रीक्युलर फिब्रिलेशन कहते हैं। इस स्थिति के पारिवारिक इतिहास वाले या दिल की किसी अन्य समस्या वाले मरीज कार्डियेक अरेस्ट के जोखिम में रहते हैं। इस बारे में बात करते हुए कार्डियेक कैथ लेब, मेक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल (नई दिल्ली) के डायरेक्टर एवं हेड डाॅ. मनोज कुमार ने बताया कि अचानक होने वाला कार्डियेक अरेस्ट वेेंट्रीक्युलर फिब्रिलेशन और वीटी के रूप में रहने वाले अराहायथेमिस की वजह से दिल में होने वाले इलेक्ट्रिकल मालफंक्शन के कारण होता है।
डाॅ. मनोज कुमार आगे बताते हैं कि हार्ट फंक्शन में व्यवधान होने से शरीर के अन्य हिस्सों की ब्लड सप्लाई भी प्रभावित होती है। तत्काल उपचार नहीं मिलने पर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। डिफिब्रिलेशन कार्डियेक अरेस्ट के उपचार (treatment of cardiac arrest) के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक हैं। यह एक तकनीक है, जिसमें हार्ट को इलेक्ट्रिक शाॅक दिया जाता है। आईसीडी का आमतौर पर उपयोग डिफिब्रिलेट और हार्ट को सामान्य रिदम में लाने के लिए किया जाता है। यह डिवाइस सूचनाएं एकत्र करने में भी मदद करता है, जिसका उपयोग डायग्नोस करने और मरीज की सटीक आवश्यकताओं का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
Heart Attack : हार्ट अटैक की रोकथाम के लिए इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी एक बेहतर विकल्प
आईसीडी (ICD) एक छोटा पेसमेकर के समान डिवाइस होता है, जो स्किन के अंदर प्लेस किया जाता है। यह हार्टरेट और रिदम को रिसेट कर सकता है। यह 24 घंटे हार्ट को माॅनिटर करता है और यदि रिदम में समस्या होती है, तो उसे पहचानकर इसे सुधारने के लिए इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स भेजता है। डाॅ. कुमार ने बताया कि कार्डियेक अरेस्ट होने पर मरीज को बचाने के लिए समय पर उपचार और डिफिब्रिलेशन आवश्यक है। यदि अरेस्ट के तीन से पांच मिनिट के भीतर डिफिब्रिलेशन किया जाए, तो मरीज के बचने की संभावना 50 से 70 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। इसके बाद मरीज को अस्पताल ले जाने पर आगे के उपचार किए जा सकते हैं।