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पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु की कमी है ''एजुस्पर्मिया'', जानें, क्या इस समस्या से ग्रस्त पुरुष बन सकते हैं पापा ?

पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु की कमी है ''एजुस्पर्मिया'', जानें, क्या इस समस्या से ग्रस्त पुरुष बन सकते हैं पापा ?

शोध में ये बात सामने आई कि पुरुषों में एजुस्पर्मिया की समस्या 12 से 20 प्रतिशत तक बढ़ी है। वीर्य कम होने की समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी। गलत जीवनशैली, खानपान में गड़बड़ी, तनाव, फॉलीक्यूलर स्टिमुलेटिंग हार्मोन का कम होना, अनुवांशिक कारण आदि।

Written by Anshumala |Published : May 22, 2019 1:51 PM IST

आजकल दुनिया में अधिकतर लोग नपुंसकता के शिकार हो रहे हैं। इसमें महिलाओं के साथ पुरुष भी शामिल हैं। पुरुष अक्सर झिझक और संकोच के कारण अपनी यह समस्या लोगों से बता नहीं पाते हैं। नपुंसकता को छिपाना आगे चलकर बड़ी समस्या का रूप ले सकता है। पुरुषों में नपुंसकता होने के कारण एजुस्पर्मिया भी है।

क्या है एजुस्पर्मिया ?

कई शोध में यह सामने आया है कि लगभग 5 प्रतिशत पुरुष एजुस्पर्मिक (azoospermia) होते हैं यानी उनके वीर्य में शुक्राणु की कमी होती है। इस स्थिति को एजुस्पर्मिया कहा जाता है। एजुस्पर्मिया पुरुषों में होने वाली एक ऐसी चिकित्सा स्थिति है, जिसके वीर्य में कोई शुक्राणु नहीं होता है। यह बांझपन से जुड़ा होता है। मनुष्यों में, एजुस्पर्मिया लगभग 1 प्रतिशत पुरुष आबादी को प्रभावित करता है। यह बांझपन की स्थितियों से जूझने वाले लगभग 20 प्रतिशत पुरुषों में भी देखा जा सकता है। दूसरी ओर, जब शुक्राणु की संख्या सामान्य से कम होती है, तो उसे ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं। इन दोनों परिस्थितियों वाले पुरुषों के जरिए सामान्यतया प्रेग्नेंसी की संभावना नहीं होती, क्योंकि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 60-120 मिलियन प्रति मि.ली. के बीच होनी चाहिए।

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कैसे होता है एजुस्पर्मिया ?

शोध में ये बात सामने आई कि पुरुषों में यह समस्या 12 से 20 प्रतिशत तक बढ़ी है। वीर्य कम होने की समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी। गलत जीवनशैली, खानपान में गड़बड़ी, तनाव, फॉलीक्यूलर स्टिमुलेटिंग हार्मोन का कम होना, अनुवांशिक कारण आदि।

ऐसा क्यों होता है

- शुक्राणुओं के निर्माण में आने वाली इन बाधाओं के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हार्मोन के स्राव की समस्या, टेस्टिकुलर फेलियर, टेस्टिस में सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में सूजन तथा संक्रमण आदि प्रमुख हैं। मस्तिष्क में पिट्यूटरी ग्लैंड (एक विशेष ग्रंथि) से एक विशेष हार्मोन, जिसे फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन कहते हैं, का स्राव होता है। ये रक्त के जरिए टेस्टिस में पहुंचकर उसकी कोशिकाओं को शुक्राणुओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है। इसमें किसी तरह की गड़बड़ी या इसके स्राव में कमी होने की वजह से शुक्राणुओं का निर्माण प्रभावित होता है।

- जननांगों में संक्रामक रोग, जैसे मंप, टीबी, गुप्त रोग की वजह से भी टेस्टिस की सामान्य क्रियाशीलता प्रभावित होती है। यह सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, जिससे शुक्राणुओं का निर्माण बाधित हो जाता है। अत्यधिक धूम्रपान, खैनी, जरदा, सिगरेट, शराब, गुटका आदि का सेवन करने वालों में भी इस तरह की कमी आमतौर पर देखने को मिलती है। जननांगों में संक्रमण से भी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।

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रखें खास ख्याल

पर्याप्त संख्या में शुक्राणुओं के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि अंडकोष सही पोजिशन में हो। उसका तापमान शारीरिक तापमान से कम हो। इसमें थोड़ी सी भी गड़बड़ी होने से इससे शुक्राणु निर्माण में बाधा होती है। वे पुरुष, जो गर्म जगहों पर काम करते हैं, जैसे ब्लास्ट फर्नेस, फायर एरिया, अंडरग्राउंड खदान, जहां का तापमान ज्यादा होता है, उनमें इस तरह की शिकायत आमतौर पर देखने को मिलती है। टाइट अंडरपैंट पहनते हैं या जिन्हें रक्त नलियों में सूजन की बीमारी है, उनमें भी इस तरह की शिकायत देखने को मिल सकती है। टेस्टिस में रचनागत खराबी, टीबी, गुप्त रोग, चोट लगने, संक्रमण या फिर सूजन हो जाने की स्थिति में भी इस तरह की समस्या देखने को मिल सकती है।

बन सकते हैं पापा

बांझपन की समस्या होने पर भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप भी पापा जरूर बन सकते हैं। किसी अच्छे हॉस्पिटल में पूरी जांच करावाएं। उन जगहों पर ही जांच करवाएं जहां ऐसी समस्या की जांच और इलाज के लिए उच्च स्तरीय व्यवस्था हो। जांच के दौरान यदि हार्मोन संबंधी किसी भी तरह की गड़बड़ी होती है, तो इसके लिए दवा देकर इसके लेवल को बढ़ाया जाता है। यदि टेस्टिस में किसी तरह का ट्यूमर, सिस्ट या किसी तरह की रचनागत खराबी है, तो ऑपरेशन द्वारा इसे ठीक किया जाता है।

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