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मानव शरीर में किडनी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है और रक्त को फिल्टर करती है। आजकल सभी खाद्य पदार्थों मे मिलावट होने व खराब खानपान के कारण किडनी को अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने की आवश्यकता पड़ती है और इसी कारण आजकल किडनी से संबंधित तमाम तरह की बीमारियां समाज में फैल रही हैं। इनके इलाज के लिए अंग्रेजी व अन्य प्रकार की दवाओं का सेवन करना ही पड़ता है, साथ ही अन्य बीमारियों के चलते दवाओं के ज्यादा सेवन से किडनी पर और भी बुरा असर पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरूप डॉक्टर के पास डायलिसिस करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ और कर्मा आयुर्वेद के फाउंडर डॉ. पुनीत का कहना है कि विश्व स्तर पर देखा जाए तो हर दस में से एक व्यक्ति किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित है और एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 850 मिलियन लोग किडनी की समस्या से ग्रसित हैं। जिनका प्रमुख कारण एनाल्जेसिक नेफ्रोपैथी, ब्लड प्रेशर का बढ़ना और अनियंत्रित मधुमेह तो है ही पर कुछ दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल, आहार में अत्यधिक हाई फैट व पशु प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल और शराब के सेवन से भी किडनी पर बुरा असर पड़ता है।
इसके अलावा शरीर में क्रिएटिनिन लेवल के अधिक होने से किडनी खराब होने का खतरा बना रहता है और किडनी खराब होने के कारण रोगी के शरीर में रक्त शुद्धिकरण, नमक, पानी, यूरिया व अन्य अपशिष्ट पदार्थों को निकालने के लिए कार्य करने में लायक नहीं रहता है। जिस कारण शरीर को नुकसान होने लगता है और अंत में एक मात्र विकल्प के तौर पर डायलिसिस की प्रक्रिया ही बचती है।
हालांकि, डायलिसिस की प्रक्रिया के बाद शरीर पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाता और तमाम तरह की दिक्कतें आने लगती हैं जैसे-
1-त्वचा में खुजली
2- मांसपेशियों में ऐंठन
3-रक्त के थक्के बनना
4- वजन का बढ़ना
5- हर्निया
6- पेरिटोनिटिस का खतरा बढ़ सकता है जिससे आपके पेट में संक्रमण हो सकता है
इसके अलावा अचानक कार्डियक अरेस्टजैसे जोखिम भी बढ़ जाता हैं जो इन रोगियों की मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण बनता है। इसके अलावा डायलिसिस का प्रक्रिया ज्यादा लंबे समय तक चलने से आर्थिक रूप से भी कमजोर बना देती है, इसलिए इसमें आयुर्वेदिक उपचार का माध्यम एक प्रभावी विकल्प हो सकता है।