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नवरात्रि के दौरान हिंदू धर्म में उपवास यानी व्रत रखने की परंपरा है। जबकि कई अन्य धर्मों और समुदायों में भी कुछ खास किस्म के रिवाज हैं, जब लोग स्वेच्छा से खाना-पीना छोड़ते हैं। यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। इससे तन और मन दोनों को कई लाभ मिलते हैं। इसी सदंर्भ में एक स्टूडेंट ने इसे इंटरमिटेंट डाइट से जोड़ते हुए सद्गुरू (Sadhguru video on Fasting benefits) से सवाल किया कि क्या यह वाकई स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है? आइए जानते हैं सद्गुरु के शब्दों में।
इन दिनों इंटरमिटेंट डाइट भी चलन में है। इस डाइट प्लान में एक तय अवधि तक खानपान छोड़ दिया जाता है। जबकि शेष समय में आप कुछ भी खा या पी सकते हैं। इसमें 8 और 16 का अनुपात रखा जाता है। यानी आप आठ घंटे भोजन कर सकते हैं और सोलह घंटे आपको भूखे रहना होता है। इस डाइट प्लान को सेहत के लिए काफी फायदमेंद माना जाता है। इसे फॉलो कर कई सेलिब्रिटीज ने आश्चर्यजनक रूप से अपना वजन कम किया है।
सद्गुरू उपवास की अहमियत तो बताते हैं, पर इससे पहले वे भूखे रहने और खाली पेट रहने के अंतर को अलग करते हैं। भूखे होने का अर्थ है कि आपकी एनर्जी डाउन हो गई है और आपके शरीर को और ईंधन की आवश्यकता है। जबकि खाली पेट होना यानी उपवास में होने का अर्थ है कि आपके शरीर को अभी और ईंधन यानी भोजन की जरूरत नहीं है। यह ज्यादा बेहतर स्थिति है।
सद्गुरू जग्गी वासुदेव का ऐसा मानना है कि आजकल लोग सिर्फ खाने के शौक में ज्यादा खाने लगे हैं। वे अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा ईंधन दे रहे हैं, जिससे वह बीमार हो रहा है। इससे कई तरह की अवांछित बीमारियां भी उन्हें घेर रहीं हैं। जबकि एक मील से दूसरे मील के बीच कम से कम आठ घंटे का अंतराल होना चाहिए। यह शरीर को सही तरह से कार्य करने के लिए अच्छा है।
गाडि़यों, मोटरसाइकिल और अन्य चीजों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि हम उन चीजों को प्राथमिकता देते हैं जो कम ईंधन की खपत करती हैं। जबकि अपने बारे में हम अब भी उतने ही जड़ हैं। अगर आपका शरीर सही है तो उसे ज्यादा खाना खाने की जरूरत नहीं है। जबकि इम्पल्सिवनेस यानी बेचैनी आपके शरीर के लिए एक समस्या हो सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि हम केवल उतना ही आहार ग्रहण करें, जितना हमारे शरीर के लिए जरूरी है।