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रक्षाबंधन 2019 : सिबलिंग के साथ हैप्‍पी होंगे रिलेशन, जब फॉलो करेंगे ये टिप्‍स

रक्षाबंधन 2019 : सिबलिंग के साथ हैप्‍पी होंगे रिलेशन, जब फॉलो करेंगे ये टिप्‍स
siblings relationship

इस समय की सबसे बड़ी परेशानी है समय का न होना। उस पर कॅरियर और कॉम्पीटिशन के कारण रिश्तों के लिए समय निकालना और भी मुश्किल होता जा रहा है। पर थोड़ी सी समझदारी के साथ आप भाई-बहन के रिश्ते को भी मजबूत बना सकते हैं।

Written by Yogita Yadav |Published : August 15, 2019 8:52 AM IST

रक्षाबंधन सिर्फ त्‍योहार नहीं है, बल्कि यह भाई-बहन (sibling relationship tips) के रिश्‍ते के बीच मौजूद बॉन्डिंग को और मजबूत करने का एक अवसर भी है। वे भाई-बहन जिनके साथ बचपन का एक-एक‍ पल सेलिब्रेट होता था, उन्‍हीं भाई-बहनों से अब मिले हुए भी अरसा बीत जाता है। जबकि कई बार तो कॉम्‍पीटिशन इतना ज्‍यादा बढ़ जाता है कि रिश्‍ते तनावपूर्ण होने लगते हैं। अगर आप कॅरियर की आपाधापी, अपनी पर्सनल लाइफ के साथ ही सिबलिंग्‍स (sibling relationship tips) के साथ अपने रिश्‍ते में वही जीवंतता बनाए रखना चाहते हैं तो फॉलो करें ये छोटे-छोटे पर जरूरी टिप्‍स।

बदल गया है समय

आपको सबसे पहले यह समझना होगा कि अब समय बहुत बदल गया है। आपके अपने सिबलिंग (sibling relationship tips) के साथ रिश्‍ते वैसे नहीं रह गए हैं, जैसे आपने अपने मामा या बुआ को अपने माता-पिता के साथ देखा है। बदले समय में दोनों की मजबूरियां और अपेक्षाएं भी बदल गई हैं। इसलिए केवल रिश्‍ते में प्‍यार भरने की कोशिश करें। उनसे मतलब निकालने की कोशिश हरगिज न करें।

उम्र के फासले

सिबलिंग (sibling relationship tips) ,  भाई-बहन के रिश्‍तों में कभी तो उम्र का बहुत फासला होता है। पर कभी आपकी उम्र में बस साल-दो साल का ही अंतर होता है। पर अब आप बड़े हो चुके हैं। बचपन की तू तड़ाक को भूल जाना चाहिए। यह रिश्‍ता तभी मजबूत होगा जब आप अपने भाई या बहन को पर्याप्‍त सम्‍मान देंगे। यह न सोचें कि वे आपसे छोटे हैं तो उन्‍हें सम्‍मान की जरूरत नहीं है। बल्कि यह तो ऐसी चीज है जो हर रिश्‍ते को और मजबूत बना देती है।

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भावनाओं का ओवरडोज

ऐसा अकसर बहनों के साथ होता है। वे ये भूल जाती हैं कि आपकी भावनाओं के सा‍थ भाई की एक पर्सनल और फैमिली लाइफ भी है। इसमें आपकी भावनाओं को ओवरडोज परेशानी खड़ी कर सकता है। खुद भी आत्‍मनिर्भर बनें और भाई को भी आत्‍मनिर्भर होकर जिंदगी जीने दें। एक-दूसरे की सलाह बस उतनी ही लें और दें, जितनी जरूरी है।

बहस को बढ़ने न दें

असहमति और बहस में बहुत थोड़ा सा अंतर होता है। इसे बनाए रखें। किसी भी राय पर असहमत होना एक बात है और उस पर बहस छेड़ देना दूसरी बात। किसी भी मामले को बहस में तब्‍दील न होने दें। क्‍योंकि फि‍र इसका कोई अंत नहीं है। बेहतर है कि बातों से चीजों को सुलझाने की कोशिश करें, अगर कोई उपाय नजर न आए तो पैरंट्स की मदद लें क्योंकि वे ही ऐसे लोग हैं जो बच्चों को सबसे अच्छे से जानते हैं।

न लें कोई टफ फैसला

गुस्‍से में, बहस में या असहमति में कभी भी ऐसा कोई टफ फैसला न लें, कि बाद में आपके लिए रिश्‍ते निभाना ही मुश्किल हो जाए। कुछ चीजें बड़ी नहीं होती, पर उन पर लिए गए फैसले बुरी तरह से हर्ट कर देते हैं। भाई-बहन के बीच ऐसी फीलिंग्स न आए इसलिए बेहतर है कि गुस्सा आने की स्थिति में थोड़ी देर अकेले रहें। अपने विचारों को सॉर्ट आउट करें और फिर मुद्दे को लेकर बहन से बात करें। इससे आप दोनों ज्यादा बेहतर तरीके से चीजों का हल ढूंढ सकेंगे।

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