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बच्चे अक्सर अकेले में अपने खिलौनों, गुड्डे-गुड़ियों या पालतू जानवरों से बातें करते हैं। इसे लोग बचपना समझते हैं। जब कोई बड़ा व्यक्ति कुछ ऐसा करता दिखता है, तो लोग उसे बेवकूफ या पागल समझ बैठते हैं। कई लोग अकेले में खुद से बातें करते हैं। कुछ को घर की बालकनी या बगीचे में लगे पेड़-पौधों से बातें करना अच्छा लगता है। वहीं, कुछ लोग अपने पालतू जानवरों से अपनी मन की बात शेयर करते हैं। आमतौर पर जो लोग ऐसा करते हैं, उनके प्रति लोगों की सोच नकारात्मक होती है। पर असल में जिनकी सोच ऐसी होती है, उन्हें यह जरूर जान लेना चाहिए कि अकेले में खुद से, पेड़-पौधों से यहां तक कि अपने पेट्स या किसी फेवरेट वस्तु से बातें करना सेहतमंद रहने का एक आसान सा जरिया है। इससे आपके अंदर दबी तमाम परेशानियां, तकलीफें कम हो जाती हैं। कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, जो लोग अक्सर आत्मालाप (खुद से बातें करना) करते हैं, उनकी सोच और समझ में इजाफा होता है। बेशक खुद से बातें करना अच्छा प्रतीत न हो, लेकिन कई शोधों से यह पता चला है कि इससे बच्चों के बर्ताव को निर्देशित करने में मदद मिलती है। ‘जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल साइकोलॉजी’ में प्रकाशित एक शोध में यह जानने की कोशिश की गई है कि क्या इससे वयस्कों को भी मदद मिलती है। शोध के परिणाम में यह बात सामने आई कि खुद से बातें करने से वयस्कों की सोच, समझ और जवाब देने की क्षमता में काफी सुधार हुआ।
पलकें झपकाइए दिमाग होगा तेज, जानें कैसे
घर में पालतू जानवर होगा। उसे खिलाते हैं। बाहर टहलाते हैं। दुलार करते हैं। उसके साथ खेलते भी हैं, लेकिन क्या कभी उससे बातें करते हैं? अपने मन की बात शेयर करते हैं? कभी ऐसा करके देखिए, आपको रिलैक्स और सुकून महसूस होगा। एक अध्ययन के अनुसार, अपने पालतू जानवरों से बात करना आपकी सामाजिक बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। शिकागो यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के अनुसार, जब आप अपने पेट्स से बातें करते हैं, तो एक अपनापन का अहसास होता है। खुशी महसूस होती है। आप अकेले होकर भी अकेले नहीं होते। आप अपने पेट्स से कुछ भी शेयर करें। चाहे कोई भी बात करें। आपका दिन कैसा रहा, आपकी उम्मीदें, आशाएं एवं सपने क्या हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये न सिर्फ वफादार होते हैं, बल्कि अच्छे श्रोता भी होते हैं। स्पीच प्रैक्टिस करें या फिर किसी ऐसी सच्चाई को कुबूल कर सकते हैं, जिसे आप किसी और के साथ शेयर करने में डरते हों। जब आप अकेले होते हैं, तो वे आपकी तकलीफों, दुख-दर्द को सुनते-समझते भी हैं। किसी अपने को खो देने पर आप अपना दर्द, तकलीफ उनके साथ बांटकर देखें। मानसिक रूप से शांति महसूस होगी। ये दुख की घड़ी में सोशल सपोर्ट बनते हैं।
[caption id="attachment_659038" align="alignnone" width="655"] जब आप अपने पेट्स से बातें करते हैं, तो एक अपनापन का अहसास होता है। © Shutterstock[/caption]
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एक अन्य शोध में कहा गया है कि अपनी भावनाओं पर काबू रखने के लिए पेट से बातें करना सबसे आसान और बेहतर तरीका है। ऐसा इसलिए, क्योंकि किसी ऐसे के सामने अपनी भावनाओं को बांटना हमेशा आसान होता है, जो आपकी बातों पर किसी इंसान की तरह प्रतिक्रिया न दे और न ही आपको सही या गलत ठहराए। पालतू जानवर खासकर डॉग इंसानों द्वारा इस्तेमाल किए गए कई शब्दों को समझने में सक्षम होते हैं। वे हमारी आवाज, शरीर की भाषा और इशारों की व्याख्या करने में भी बेहतर होते हैं। अधिकतर बच्चों का अपने पेट से भावनात्मक रूप से जुड़ाव होता है। वे अकेले में भी उनसे बाते करते हैं। ऐसे बच्चे बाहरी या दूसरे लोगों से जल्दी रिश्ता कामय करने में माहिर होते हैं। खासकर ऑटिज्म या अन्य सीखने-समझने की समस्याओं से पीड़ित बच्चे इंसानों के मुकाबले पेट्स से आसानी से बातचीत कर पाते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऑटिस्टिक बच्चे अक्सर संवाद करने के लिए संकेतों पर निर्भर रहते हैं, जैसा कि कुत्ते या बिल्ली करते हैं। ऐसे में किसी चीज को सीखने के लिए जब ऑटिस्टिक बच्चे का जुड़ाव एक कुत्ते से होता है, तो इससे उन्हें दूसरे लोगों से बात करने में काफी मदद मिलती है। खेल-खेल में और प्यार से सहलाते हुए बातें करने पर अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति को आराम मिलने के साथ ही आक्रामक व्यवहार और गुस्से में भी कमी आती है।
दिमाग रहेगा स्वस्थ, जब डाइट में शामिल करेंगे ये जरूरी पोषक तत्व
खुद से बातें करते वक्त आपको किसी ने देख लिया और आप शर्मिंदगी महसूस करने लगे? तो शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं। यह पूरी तरह से सामान्य और स्वस्थ है। खुद से बातें करने को मानसिक बीमारी समझना पूरी तरह से गलत है। वेल्स के बैंगर यूनिवर्सिटी की साइकोलॉजिस्ट पालोमा मैरी बेफ्फा का कहना है कि जो लोग मन में, जोर से या फिर मन ही मन में खुद से बातें करते हैं वे सेहतमंद रहते हैं। मन में खुद से बातें करने से आपको स्वयं पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है, जबकि जोर से बातें करने का अर्थ होता है दिमाग का सही तरीके से कार्य करना न कि किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होना। अंदर ही अंदर बातें करने का हमारे मस्तिष्क को फिट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमारे विचारों को सुनियोजित करता है और याद्दाश्त को मजबूत करता है। वहीं जोर से बात करने को साइलेंट इनर टॉक का विस्तार माना गया है। ऐसा तब होता है, जब मस्तिष्क में मौजूद कोई खास मोटर कमांड अनजाने में ही सक्रिय हो जाए। खुद से बातें करना का यह मतलब नहीं होता कि आप बेवकूफ हैं। वास्तव में, यह आपके विचारों को स्पष्ट करने में मदद करता है, स्ट्रेस कम कर मूड को बेहतर करता है।