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अक्सर कुछ लोगों को आधी रात में उठकर कुछ न कुछ खाने की आदत होती है। इसे ''नाइट ईटिंग सिंड्रोम'' कहते हैं। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति रात के समय नींद से उठकर भूख न होने के बावजूद भी खाना खाने लगता है। यह एक तरह की मानसिक समस्या है। कई बार यह ईटिंग डिसऑर्डर और स्लीप डिसऑर्डर के कारण भी होता है। यह दोनों भी एक मानसिक विकार के अंतर्गत ही आते हैं, जिसके पीछे अहम कारण दिमाग में होने वाले रासायनिक बदलाव हैं। जानें, नाईट ईटिंग सिंड्रोम से जुड़ी अन्य जरूरी बातें...
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कारण
मनोचिकित्सक इस तरह के मानसिक विकार के पीछे मेलाटोनिन नामक हार्मोन में होने वाला उतार-चढ़ाव को जिम्मेदार मानते हैं। यह हार्मोन ‘पीनियल ग्रन्थि’ को बनाता है। यह छोटी ग्रंथि व्यक्ति के दिमाग में पाई जाती है। यह व्यक्ति की नींद को नियंत्रित करती है। मेलाटोनिन में होने वाले बदलाव के कारण व्यक्ति को ठीक से नींद न आना या नींद से किसी भी वक्त उठ जाने जैसी समस्या होती है। इसके साथ-साथ खाने से संबंधित होने वाले मानसिक विकार के कारण भी इस तरह का विकार देखने को मिलता है। कई बार अनुवांशिकता भी एक कारण माना जाता है।
लक्षण
जिन्हें यह समस्या होती है, उनमें रात के खाने के बाद पूरे दिन प्रयोग में लाए जाने वाला कैलोरी की खपत का आधा हिस्सा खाते हैं। अन्य लक्षणों में सुबह के समय भूख न लगना, रात के खाने के बाद और सोने से पहले खाने की तीव्र इच्छा, सप्ताह में चार से पांच दिन इन्सोम्निया की शिकायत होना, शाम के समय गहरे डिप्रेशन में चले जाना आदि शामिल हैं।
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जांच
मनोचिकित्सक सबसे पहले ऐसे लक्षण नजर आने पर पीड़ित से कई तरह के सवाल करता है, जो कि उसके खाने और सोने से संबंधित होते हैं। इसके साथ-साथ व्यक्ति का स्लीप टेस्ट भी किया जाता है, जिसे पॉलीसोम्नोग्राफी कहा जाता है। दिमाग की तरंगों, खून में ऑक्सीजन के लेवल और हृदय और सांसों की दर की जांच की जाती है।
शरीर पर प्रभाव
इसमें सबसे ज्यादा असर व्यक्ति के वजन पर देखने को मिलता है। इससे पीड़ित लोगों का वजन अधिक बढ़ जाता है। बढ़ते वजन के कारण हृदय रोग सहित, मोटापे से संबंधित अन्य तरह की समस्याएं भी होने लगती हैं।
उपचार में क्या
इस तरह के विकार में व्यक्ति को दवाओं और थेरेपी पर आधारित उपचार किया जाता है। दवाओं में मुख्य रूप से एंटी-डिप्रेशन दवाओं का प्रयोग किया जाता है और थेरेपी के लिए कोगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी का सहारा लिया जाता है।