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Home / Hindi / Acne / पिम्पल इन 8 तरीकों से करते हैं आपके दिमाग पर असर!

पिम्पल इन 8 तरीकों से करते हैं आपके दिमाग पर असर!

Acne के मनोवैज्ञानिक प्रभावों से उबरना मुश्किल है।

By: Editorial Team   | | Published: August 21, 2017 1:44 pm
Tags: Anxiety  Emotional stress  Skin condition  
Psychological Problems caused by Pimple Hindi

बहुत से लोगों का मानना है कि मुंहासे सिर्फ एक सौंदर्य से जुड़ी हुई या कॉस्मेटिक समस्या है, यह एक छोटी सी त्वचा संबंधी परेशानी है जो आपके चेहरे पर कुछ धब्बे छोड़ जाते हैं और आपके किशोरावस्था कुछ साल ये परेशानी लगातार बनी रहती है। लेकिन मुंहासे या पिम्पल के निशान और बदसूरत दाग केवल त्वचा पर ही नहीं होते। इनका असर इतना गहरे होते है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। Also Read - सोचते वक्त बिल्कुल भी न खाएं-पिएं ये फूड और ड्रिंक, कांपने लगेगा शरीर का ये खास अंग 

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मुझे 17 साल से अधिक समय तक मुंहासे होते रहे हैं, मैं बहुत अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि मुंहासे कितनी तकलीफभरी बात है। क्योंकि मेरे मुंहासे ने मुझे अपने टीनएज में तो जितना परेशान किया उतना ही आज 30 की उम्र में भी कर रहा है। मुझे पता है कि यह कितनी गहराई से हर उम्र में मेरी खुद की कीमत कम आंकने के लिए मज़बूर करता रहा है, यह मेरे आत्मसम्मान को कम करता है, और मुझे वैसी ज़िंदगी नहीं जीने देता जिस तरह से मैं हमेशा चाहती थी। मेरे लिए किसी से आंख से मिलाकर बात करना भी मुश्किल हो गया था, मुझे डर था कि कहीं कोई यह न कह दे कि पिछली बार जब वे मुझे मिले थे तब मेरी स्किन कितनी ख़राब थी। नौकरी के इंटरव्यू में, मैं घबराकर गड़बड़ कर बैठती थी, हमेशा भ्रमित रहती थी, मुझे हमेशा लगता था कि इंटरव्यू हॉल में बैठा हर व्यक्ति की नज़र मेरे चेहरे पर ही टिकी है। “मुल्तानी मिट्टी के साथ गुलाब जल लगाओ,” मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करते समय मुझे अजनबियों ने यह सलाह बिना मांगे ही कई बार दे दी। मैं कई बार यह भी सोचती थी क्या कभी मुझे किसी का प्यार मिलेगा। Also Read - कोरोना से लोगों के मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है बुरा असर, मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करेंगी ये एक्टिविटीज

इससे भी बदतर बुरा मुझे उन बातों पर लगता था जो लोग मुझे इस समस्या से राहत दिलाने के लिहाज से सुनाते थे। कई बार लोगों ने, यह तक कि मेरे अपनों ने भी मुझसे दुखी होने और इस बात का शुक्र मनाने की बात कही कि मेरी पिम्पल की समस्या स्थायी नहीं है। मुझे भी कुछ लोगों ने निकम्मा भी घोषित कर दिया क्योंकि मैं अक्सर अपनी त्वचा की देखभाल करने में व्यस्त रहती थी।

पिम्पल्स किशोरावस्था के दौरान शुरू होते हैं, जब आप गम्भीर मनोवैज्ञानिक अस्थिरता से गुज़रते हैं और आपकी पहचान आकार लेना शुरू कर देती है। यह आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण समय है जब आप चाहते हैं कि आपकी सबसे अच्छी खूबी लोगों को पता चले। लेकिन किशोरावस्था में मुंहासों जैसी किसी समस्या से जूझना, आपके मन पर गहरे असर कर सकता है, जो सिर्फ त्वचा तक ही सीमित नहीं होता। 1999 में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि जो लोग कम उम्र में पिम्पल्स से परेशान थे उन्हें मधुमेह (डायबिटीज़) और मिर्गी के रोगियों की तुलना में भावनात्मक और सामाजिक व्यवहार से जुड़ी समस्याएं अधिक महसूस होती हैं।

मुंहासे ठीक हो जाने के बाद भी होनेवाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती, लेकिन लोगों से मिलने-जुलने में झिझक और शर्मिंदगी जैसी भावनाओं को दूर करने में सफलता मिलते देखा गया है। मंहासों से ग्रस्त मरीजों को जिन भावनात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है वे हैं-

बहुत अधिक तनाव: यदि आप मुंहासे से पीड़ित एक लड़की हैं, तो संभावना है कि आपको बहुत अधिक तनाव से गुजरना पड़े। दरअसल जब बात सौंदर्य मानकों को खरा उतरने और परफेक्ट दिखने की बात आती है, तो समाज पुरुषों की तुलना में महिलाओं से अधिक उम्मीदें करत है। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि तनाव ऐसी महिलाओं के लिए जीवन का हिस्सा बन जाता है जो मुंहासे के साथ बड़ी होती हैं।2

डिप्रेशन और चिंता की अधिक संभावना: 2004 में किए गए एक नॉर्वेजियन सर्वेक्षण में यह बताया गया कि चिंता और अवसाद या डिप्रेशन मुंहासों का आपस में सम्बंध है। दरअसल, व्यक्ति के मूड और मुंहासों के बीच एक हल्का सा ही अंतर देखा गया, जिसका मतलब है कि मुंहासे की गंभीरता सीधे-सीधे व्यक्ति के मूड पर आधारित होती है।3

आत्मसम्मान में कमी: जब किसी महत्वपूर्ण उम्र में मुंहासे जैसी समस्याएं होती हैं तो आपकी पूरी जिंदगी पर इसका प्रभाव दिखायी देता है। इसकी मुख्य वजह यही है क्योंकि समाज मीडिया के माध्यम से बेदाग त्वचा के आदर्श को कायम करता है, जिसकी वजह से मुंहासों से परेशान व्यक्ति खुद को कम आंकता है। कम आत्मसम्मान मुंहासे के दूरगामी मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों में से एक है। पीड़ित अक्षमता और अस्वीकृति की भावनाएं अनुभव करते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि मुंहासे से परेशान बहुत से लोग केवल इस डर की वजह से खेल-कूद जैसी गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेते, क्योंकि उन्हें लगता है कि दूसरे उन्हें लापरवाह और गंदा मान बैठेंगे जिसका सबूत उनके मुंहासों को बताया जाएगा। 4

शर्मिंदा: कम आत्मसम्मान और खुद के कम होने की राय के कारण मुंहासों से ग्रस्त मरीजों को अधिक खुद के बारे में अधिक चिंता और शर्मिंदगी से ग्रस्त होना पड़ता है। वे लगातार चिंता करते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं या उन्हें कैसे देखते हैं। दुर्भाग्य से, ये भावनाएं उन्हें जीवन में कई अवसरों पर आगे बढ़ने से रोकती हैं।

कपड़ों के पीछे छिपे रहना: चूंकि पिम्पल से परेशान मरीज़ अपनी त्वचा की स्थिति के बारे में चिंतित होता है, इसीलिए ऐसे लोग मुंहासे से प्रभावित अपने शरीर के कुछ हिस्सों को हमेशा छिपाते हैं। चेहरा, पीठ, छाती और बाहों जैसे पिम्पल होनेवाले स्थानों को अक्सर ये लोग हुडीज़, स्वेटशर्ट्स के साथ छुपाते हैं। इसी तरह लड़कियां ऐसे कपड़े पहनने से कतराती हैं जिनमें उन्हें लगता है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित हो सकता हैं।

दुर्भावनापूर्ण सामाजिक जीवन: मुंहासे से ग्रस्त मरीज, विशेष रूप से महिलाएं, सामाज से कटे-कटे से रहते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि दूसरे लोग उन्हें बुरी नज़र से देखेंगे या उनका उपहास करेंगे। वे सामाजिक कार्यों और गतिविधियों से बचते हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि कई लोग छुपकर रहने वाला व्यवहार स्थायी रूप से गुण विकसित करते हैं। वे स्वस्थ सामाजिक रिश्तों की उम्मीद ज़रूर करते हैं लेकिन, संकोच, खुद को कम समझने, आलोचना के प्रति संवेदनशीलता और लोगों की बातों के डर से पीड़ित रहते हैं।

निकट और प्रियजनों के साथ तनावपूर्ण रिश्ते: विभिन्न स्टडीज़ से पता चलता है कि मुंहासों से परेशान 75 प्रतिशत मरीजों ने अपने परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों के साथ पारस्परिक समस्याओं का अनुभव किया। परिवार के सदस्यों को उनके मुंहासे की ओर लगातार इशारा करते हुए या उसके बारे में पूछताछ करने की आदत होती है, जो रोगियों को आसानी से बीमार करता है।

शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट: एक अध्ययन के लिए सर्वे किया गया और इस सर्वे में शामिल लगभग 57 प्रतिशत किशोरों या टीनएजर्स ने कहा कि पिम्पल्स की वजह से उनकी पढ़ाई में पर असर पड़ता है। इन बच्चों को हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती थी कि उनकी त्वचा और चेहरा कैसा दिख रहा है, और इसी चक्कर में वे अपनी पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे।

संदर्भ-

1. 1. Mallon E, Newton JN, Klassen A, Stewart-Brown SL, Ryan TJ, Finlay AY. The quality of life in acne: a comparison with general medical conditions using generic questionnaires. Br J Dermatol. 1999 Apr;140(4):672-6. PubMed PMID:10233319.

2. Fried RG, Wechsler A. Psychological problems in the acne patient. Dermatol Ther. 2006 Jul-Aug;19(4):237-40. Review. PubMed PMID: 17004999.

3. Halvorsen, J. A., Dalgard, F., Thoresen, M., Bjertness, E., & Lien, L. (2009). Is the association between acne and mental distress influenced by diet? Results from a cross-sectional population study among 3775 late adolescents in Oslo, Norway. BMC Public Health, 9(1), 340.

4. Loney T, Standage M, Lewis S. Not just ‘skin deep’: psychosocial effects of

dermatological-related social anxiety in a sample of acne patients. J Health

Psychol. 2008 Jan;13(1):47-54. PubMed PMID: 18086717.

5.Behnam, B., Taheri, R., Ghorbani, R., & Allameh, P. (2013). Psychological Impairments in the Patients with Acne. Indian Journal of Dermatology, 58(1), 26–29. http://doi.org/10.4103/0019-5154.105281

Read this in English.

अनुवादक-Sadhana Tiwari

चित्रस्रोत-Getty Images.

Published : August 21, 2017 1:44 pm
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